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उमर और अनिर्बान ने बांटा आजमगढ़ का दर्द

Umar Khalid said, "They used to call me Khalid Bhai, Khalid Miyan or Khalid Sahab in jail and Anirban as Anirban Jee... I was preparing my defence, saying I'm not a practicing Muslim and so on, but then it struck me. Will this help? What if I was a practicing Muslim? What if I came from Azamgarh, I had been educated in a Madrasa, I wore a skullcap and I had a beard? Would all of this be justified after that?" 
उमर खालिद, कन्हैया कुमार और अनिर्बान भट्टाचार्य
उमर खालिद, कन्हैया कुमार और अनिर्बान भट्टाचार्य
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य ने जेल से रिहा होने पर भाषण के दौरान आज़मगढ़ के लोगों का दर्द भी बांटा।
रिहाई के बाद शुक्रवार की रात दोनों छात्रों का ज़बरदस्त स्वागत हुआ। इस बीच उमर खालिद ने  अनुभव बांटते हुए कहा कि क्या होता अगर मैं आजमगढ़ से होता और किसी मदरसे से शिक्षा प्राप्त की होती। इसपर उमर ने स्वयं उत्तर देते हुए कहा की शायद मामला दूसरा होता। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि तहक़ीकात के दौरान उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे उनका इंट्रोगेशन नहीं बल्कि पूरे मुस्लिम समुदाय का इंट्रोगेशन चल रहा हो। उमर खालिद ने मरहूम शाहिद आज़मी का उदहारण देते हुए पूछा कि उनके साथ क्या हुआ ये हम सब जानते हैं आखिर उनका गुनाह क्या था ?
उमर के बाद अनिर्बान भट्टाचार्य ने भी आतंकवाद के नाम पर जिस तरह मुस्लिम नौजवानो को फ़र्ज़ी मुक़दमात में फंसाया जा रहा है उस पर विस्तार से बात की। अनिर्बान ने खालिद मुजाहिद के बारे में बात करते हुए कहा कि खालिद के साथ जो कुछ हुआ क्या उसके लिए हम ज़िम्मेदार नहीं हैं मुझे नहीं मालूम कि खालिद के लिए कितने लोग सड़को पर निकले थे। अगर हमने कुछ नहीं था तो उसके बारे में हमें सोचना चाहिए। अनिर्बान ने कहा कि सरकार का एक फ्रेम वर्क है आतंकवाद में लोगों को फंसाने के लिए जो इसमें फिट हो जाता है वही सबसे बड़ा मुजरिम होता है। उन्होने कहा की अगर लोग जेएनयू के बजाय आजमगढ़ से होते और दाढ़ी टोपी वाले मुस्लमान होते तो शायद उन्हें इतना समर्थन भी नहीं मिलता और इसका परिणाम क्या होता इसके उदाहरण हमारे सामने हैं।

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