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Allama Shibli Nomani : अल्लामा शिबली नोमानी - एक संछिप्त परिचय

मौलाना शिब्ली रह० कि पैदाइश उत्तर प्रदेश के मशरिक़ी ज़िला आजमगढ़ के एक गाव बिंदवल में मई1857 ई. के एक ऐसे दिन हुई जब आजमगढ़ के लोग अपनी पहली जंग ए आज़ादी के सिलसिले में ज़िला जेल के फाटक को तोड़कर बहुत से क़ैदियों को निकाल ले गए।

         मौलाना के जद्दे आला शैख करीमुद्दीन गोरखपुर के महकमा ए बंदोबस्त में मुलाज़िम थे।  अपनी ज़ाती आमदनी को बढ़ाने के लिए उन्होंने हसमुद्दीनपुर नाम का एक इलाक़ा खरीदा था , जिसमे बारह गाव थे।  उसकी वजह से खानदान में खुशहाली थी।  मौलाना के दादा आजमगढ़ की कलक्टरी में मुख़तार थे, उनके वालिद शैख़ हबीबुल्लाह आजमगढ़ के चोटी के वकील थे। वकालत के साथ नील और शक्कर साज़ी का भी कारोबार करते थे।  उनको फ़ारसी ज़बान पर बहुत महारत थी।  मौलाना ने इसका  उठाया।  मौलाना के  खानदान में खुशहाली के साथ आला तालीम भी थी।  उनके वालिद जनाब हबीबुल्लाह के अपनी पहली बीवी से चार बेटे और एक बेटी थी। मौलाना सबसे बड़े थे उनसे छोटे मोहम्मद इसहाक़ इलाहाबाद हाईकोर्ट में कामयाब वकील थे। उनसे छोटे मेंहदी हसन ने बी ए तक इंग्लैंड में तालीम पाने के बाद वहाँ से बैरिस्ट्री कि सनद हासिल की और सबसे छोटा भाई मोहम्मद जुनैद मुंसफी के ओहदे पर फ़ाइज़ होकर आखिर में सब जज भी हो गए थे। मौलाना का नाम शिबली (शेर का बच्चा) रखा गया , आगे चलकर नोमानी उनके उस्ताद मौलाना फ़ारूक़ चिरैयाकोटी ने बढ़ा दिया था।  ये इमाम अबु हनीफा बिन साबित की तरफ निसबत थी।

          मौलाना के वालिद ने और बेटों को अंग्रेजी तालीम दिलाई मगर शिबली  को अरबी फ़ारसी तालीम दिलाने के फैसला किया। इब्तिदाई तालीम गाव में हुई फिर आजमगढ़ जाकर एक अरबी मदरसा में दाखिल हुए। कुछ अर्सा जौनपुर के मदरसा हनफ़ीह में तालीम हासिल की, मगर उनके असली उस्ताद मोहम्मद फरूक चिरैय्याकोटी थे।  जो अदब, नज़्म, नस्र, मंतिक़ और माकुलात के बहुत बड़े आलिम थे।  उनकी शागिर्दी और सोहबत में शिबली  का जौहर खूब चमका।बादाजां शिबली ने रामपुर जाकर इरशाद हुसैन से फिकहो-असूल की  तालीम हासिल कि, फिर देवबंद जाकर इल्म फ़राइज़ सीखा और लाहोर जाकर वहाँ के ओरिएंटल कॉलेज में प्रोफैसर  मौलाना फ़ैज़िुलहसन से अरबी अदब का दरस लिया। 


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