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गुलामी के वक्त भी फराही मनवाते थे विद्वत्ता का लोहा

शाहआलम फराही, एक शख्सियत जिसका नाम इतिहास के पन्नों में भले ही दबकर रह गया हो लेकिन इस्लामिक जगत में आज भी बड़े अदब से लिया जाता है। इनकी पुस्तकें अरबी, उर्दू, फारसी विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। यही नहीं इन्होंने गुलामी के दौर में अंग्रेज हुक्मरान वाय सराय लार्ड कर्जन को अरब देशों में राजनीतिक सम्बन्ध बनाने के लिए दौरा कराया था। पूरे दौरे के दौरान कर्जन के दुभाषिए के रूप में साथ रहे। इन्होंने अपनी तमाम भूमि भी शिक्षा के लिए दान कर दी।
हम बात कर रहे हैं फरिहां गांव के मौलाना हमीदुद्दीन फराही की। इनका जन्म 18 नवम्बर वर्ष 1863 को फरिहां गांव में हुआ था। इनके पिता अब्दुल करीम आजमगढ़ के बड़े जमींदार व अधिवक्ता थे। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव में हुई। बाद में फारसी की शिक्षा मौलवी में हदी हसन साहब से हासिल की। इसके बाद अरबी और फारसी की शिक्षा अपने फुफेरे भाई प्रख्यात इतिहासकार अल्लामा शिब्ली नोमानी और प्रसिद्ध अरबिक आलिम फारुख चिरैयाकोट से ली। इसके बाद इण्टर तक की शिक्षा इलाहाबाद व उच्च शिक्षा एएमओ कालेज अलीगढ़ में प्राप्त किए। वर्ष 1894 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री हासिल की। वर्ष 1897 में मदरस्तुल इस्लाम कराची में शिक्षक हो गए। वर्ष 1906 तक यहां अध्यापन का कार्य किया। इसी दौरान वायसराय लार्ड कर्जन के के साथ इन्होंने दुभाषिए के रूप में अरब देशों का दौरा किया। वर्ष 1907 में उनकी नियुक्ति अलीगढ़ एएमओ कालेज में बतौर अरबी प्रोफेसर के रूप में हुई। कुछ समय बाद वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अरबी प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हुए। इनकी सेवा आन्ध्र प्रदेश के हैदराबाद निजाम ने दारुल उलूम हैदराबाद के प्रधानाचार्य पद के लिए हासिल किया। हैदराबाद में रहते हुए इन्होंने विश्वविद्यालय स्थापना का प्रस्ताव तैयार कर सरकार के सामने रखा जिसका किसी ने विरोध नहीं किया और हैदराबाद में उस्मानियां विश्वविद्यालय की स्थापना हो गई। 1919 तक वे हैदराबाद में रहे और उसके बाद वहां से त्यागपत्र देकर अपने पैतृक गांव फरिहां आ गए। अपने गृह क्षेत्र में मदरसुल इस्लाह सरायमीर को एक उच्च शिक्षा संस्थान के रूप में विकसित किया। अपने जीवन में उन्होंने अस्सी के आसपास पुस्तकों का लेखन किया। इसमें 54 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। शेष पुस्तकों के प्रकाशन के पूर्व उनके पौत्र अरबी विश्वविद्यालय लखनऊ के प्रोफेसर उबैद फराही उसका अध्ययन कर रहे है। निजामुल कुरआन इनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक मानी जाती है। इसके अतिरिक्त जमहरतुल बलागह, अकसामुल कुरआन, मफरेदातुल कुरआन, दलाऐल निजाम, असालिबुल कुरआन, दीवाने हमीद, असबाकन्ह नौह, दीवाने फैज आदि पुस्तकें भी विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है। मौलाना फराही की लिखी पुस्तकें अरबी, उर्दू, फारसी विश्वविद्यालयों में पढ़ायी जा रही है। उनकी ज्यादातर पुस्तकें अरबी भाषा में लिखी गई है। इस कारण अरब देशों में हमीदुद्दीन फराही काफी प्रसिद्ध है। 11 नवम्बर 1930 को मौलाना फराही का इन्तकाल हो गया।

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